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July 1, 2025

आईवीएफ क्या होता है? पूरी जानकारी हिंदी में

आज की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी, बदलती जीवनशैली और बढ़ते मानसिक तनाव के कारण दंपत्तियों में बांझपन की समस्या आम होती जा रही है। ऐसे कई युगल हैं जो कई सालों तक संतान के लिए प्रयास करते हैं, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगती है। जहाँ पहले यह एक बड़ी समस्या मानी जाती थी, वहीं अब चिकित्सा विज्ञान ने ‘आईवीएफ’ जैसी तकनीक के माध्यम से इसका समाधान खोज लिया है। आईवीएफ, जिसे वैज्ञानिक भाषा में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन कहा जाता है, ने लाखों निःसंतान दंपत्तियों को माता-पिता बनने का सुख दिया है। यह तकनीक तब अपनाई जाती है जब सामान्य रूप से गर्भधारण संभव नहीं हो पा रहा हो। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि आईवीएफ क्या होता है, यह कैसे काम करता है, किसे इसकी ज़रूरत होती है, इसकी प्रक्रिया क्या होती है, और इससे जुड़े फायदे, नुकसान और सावधानियाँ क्या हैं। सबसे पहले, हम आपको बताना चाहते हैं कि हम IVF और अन्य प्रजनन समाधानों के लिए क्यों अच्छे हैं… आईवीएफ क्या होता है? आईवीएफ का पूरा नाम है इन विट्रो फर्टिलाइजेशन, जिसका अर्थ है “शरीर के बाहर निषेचन”।यह एक ऐसी कृत्रिम प्रजनन तकनीक है जिसमें महिला के अंडाणु और पुरुष के शुक्राणु को शरीर से बाहर लैब में मिलाया जाता है, जिससे भ्रूण (Embryo) बनता है।इस भ्रूण को फिर महिला के गर्भाशय में डाला जाता है ताकि गर्भधारण हो सके। यह प्रक्रिया खासतौर पर उन दंपत्तियों के लिए बनाई गई है जिनमें कोई गंभीर शारीरिक कारण होता है, जैसे: आईवीएफ के माध्यम से चिकित्सा विज्ञान ने एक ऐसा चमत्कार किया है, जिससे वर्षों से संतान सुख की प्रतीक्षा कर रहे परिवारों में खुशी की बहार आई है। आईवीएफ कैसे काम करता है? आईवीएफ एक जटिल प्रक्रिया है जो कई चरणों में पूरी होती है। यह प्रक्रिया आमतौर पर एक मासिक चक्र की शुरुआत से लेकर लगभग 4 से 6 सप्ताह तक चल सकती है। इसकी प्रमुख चरण निम्नलिखित हैं: 1. हार्मोनल दवाओं से अंडाणु उत्पन्न करना सबसे पहले महिला को हार्मोनल दवाएं दी जाती हैं ताकि उसके अंडाशय में एक बार में एक से अधिक अंडाणु विकसित हो सकें।प्राकृतिक रूप से हर महीने एक ही अंडाणु बनता है, लेकिन आईवीएफ के लिए कई अंडाणुओं की आवश्यकता होती है।डॉक्टर समय-समय पर सोनोग्राफी और ब्लड टेस्ट के माध्यम से निगरानी करते हैं कि अंडाणु सही तरह से विकसित हो रहे हैं या नहीं। 2. अंडाणु निकासी (एग रिट्रीवल) जब अंडाणु परिपक्व हो जाते हैं, तो एक छोटे ऑपरेशन द्वारा उन्हें महिला के शरीर से निकाला जाता है।यह प्रक्रिया अल्ट्रासाउंड मार्गदर्शन में की जाती है और सामान्यतः दर्दरहित होती है।इस दौरान महिला को हल्की बेहोशी दी जाती है। 3. शुक्राणु संग्रहण उसी दिन पुरुष से शुक्राणु का नमूना लिया जाता है।अगर पुरुष के शुक्राणु पर्याप्त न हों, तो डोनर स्पर्म या टीईएसई जैसी तकनीक का उपयोग किया जा सकता है। 4. निषेचन (Fertilization) अब लैब में अंडाणु और शुक्राणु को मिलाया जाता है।यदि शुक्राणु कमजोर हों, तो आईसीएसआई तकनीक (एक-एक शुक्राणु को अंडाणु में इंजेक्ट करना) का उपयोग होता है।इस प्रक्रिया के बाद अंडाणु और शुक्राणु मिलकर भ्रूण का निर्माण करते हैं। 5. भ्रूण का विकास भ्रूण बनने के बाद उसे 3 से 5 दिनों तक लैब में विशेष वातावरण में विकसित होने दिया जाता है।डॉक्टर सबसे स्वस्थ और मजबूत भ्रूण का चयन करते हैं ताकि उसे गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जा सके। 6. भ्रूण प्रत्यारोपण (Embryo Transfer) अब तैयार भ्रूण को महिला के गर्भाशय में डाला जाता है।यह एक आसान और दर्दरहित प्रक्रिया होती है, जिसमें एक पतली नली की मदद से भ्रूण को गर्भाशय की दीवार पर रखा जाता है।इसके बाद महिला को कुछ दिनों तक आराम की सलाह दी जाती है। 7. प्रेगनेंसी की पुष्टि भ्रूण ट्रांसफर के 12 से 14 दिन बाद रक्त की जांच (बीटा HCG टेस्ट) के ज़रिए यह पता चलता है कि गर्भधारण हुआ है या नहीं। आईवीएफ किसे करवाना चाहिए? आईवीएफ उन दंपत्तियों के लिए अनुशंसित है: आईवीएफ के फायदे आईवीएफ के नुकसान आईवीएफ की सफलता दर आईवीएफ की सफलता दर कई बातों पर निर्भर करती है: आमतौर पर, 35 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में सफलता दर 50% तक हो सकती है, जबकि अधिक उम्र में यह घटकर 30% या उससे भी कम हो जाती है। आईवीएफ के दौरान सावधानियाँ आईवीएफ के दौरान पति-पत्नी का आपसी सहयोग क्यों ज़रूरी होता है? IVF केवल शारीरिक इलाज नहीं है — यह एक मानसिक, भावनात्मक और रिश्तों की परीक्षा जैसी यात्रा होती है। इस प्रक्रिया में पति-पत्नी दोनों की भूमिका बहुत अहम होती है। जहाँ महिला शारीरिक रूप से IVF की प्रक्रिया से गुजरती है, वहीं पति का भावनात्मक और मानसिक सहयोग उसकी ताकत बन सकता है। 1. महिला की मानसिक स्थिति को समझना बहुत ज़रूरी है IVF प्रक्रिया के दौरान महिलाओं को रोज़ हार्मोनल इंजेक्शन, अल्ट्रासाउंड, ब्लड टेस्ट और कई बार दर्द सहना पड़ता है।इन शारीरिक कष्टों के साथ-साथ, उनके मन में डर, चिंता, और “क्या ये सफल होगा?” जैसे सवाल होते हैं। ऐसे समय में अगर पति उनका साथ न दे, तो महिला टूट सकती है।पर अगर पति हर कदम पर साथ हो, तो यही मुश्किल सफर एक “टीम वर्क” बन जाता है। 2. IVF में धैर्य और समझदारी ज़रूरी होती है IVF में सफलता हमेशा पहली बार में नहीं मिलती। कई बार दो या तीन चक्र भी लग सकते हैं। ऐसे में धैर्य और सकारात्मक सोच दोनों ज़रूरी होती हैं। पति-पत्नी अगर एक-दूसरे को दोष देने लगें, तो रिश्ते में दूरी आ सकती है। लेकिन अगर दोनों मिलकर ये समझें कि “ये हमारी साझा यात्रा है”, तो वो मानसिक तौर पर भी मज़बूत रहते हैं। 3. मेडिकल फैसलों में साझेदारी क्लिनिक चुनना, इलाज का तरीका तय करना (जैसे ICSI, डोनर स्पर्म/एग आदि), खर्च की योजना बनाना — ये सब निर्णय मिलकर लेने चाहिए।जब पति साथ बैठकर सलाह करता है, तो महिला को लगता है कि वो अकेली नहीं है। 4. भावनात्मक समर्थन एक दवा की तरह होता है IVF का तनाव महिला के मूड, नींद, भूख और मानसिक संतुलन को प्रभावित कर सकता है।पति अगर प्यार, धैर्य और सहानुभूति से पेश आए, तो यही भावना महिला को भावनात्मक रूप से स्थिर बनाए रखती है। भारत में IVF लागत…

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आईयूआई और आईवीएफ में क्या अंतर है? जानिए दोनों प्रक्रियाओं की पूरी जानकारी

आज की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में निःसंतानता (Infertility) एक आम चुनौती बन गई है। कई दंपत्ति वर्षों तक प्रयास करने के बाद भी संतान सुख से वंचित रह जाते हैं। लेकिन चिकित्सा विज्ञान ने ऐसी कई तकनीकें विकसित की हैं, जो दंपत्तियों को माता-पिता बनने की नई आशा देती हैं। इनमें से दो प्रमुख तकनीकें हैं — आईयूआई (IUI) और आईवीएफ (IVF)। बहुत से लोग इन दोनों शब्दों को सुनकर भ्रमित हो जाते हैं। कुछ को लगता है कि दोनों एक ही प्रक्रिया है, जबकि वास्तव में दोनों में कई बुनियादी अंतर होते हैं — जैसे प्रक्रिया का तरीका, खर्च, सफलता दर, और उपचार का उद्देश्य। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि आईयूआई और आईवीएफ में क्या अंतर है, दोनों कैसे काम करती हैं, किस स्थिति में कौन-सी प्रक्रिया बेहतर मानी जाती है, और दोनों के फायदे-नुकसान क्या हैं। सबसे पहले, हम आपको बताना चाहते हैं कि हम IVF और अन्य प्रजनन समाधानों के लिए क्यों अच्छे हैं… आईयूआई क्या है? (इंट्रायूटेराइन इनसेमिनेशन) आईयूआई का पूरा नाम है — इंट्रायूटेराइन इनसेमिनेशन (Intrauterine Insemination)। यह एक सरल और कम खर्चीली तकनीक है, जिसमें पुरुष के शुक्राणुओं को साफ़ करके सीधे महिला के गर्भाशय में डाला जाता है। इसका उद्देश्य यह होता है कि शुक्राणु अंडाणु के अधिक करीब पहुंचे और निषेचन की संभावना बढ़े। इस प्रक्रिया में महिला के मासिक चक्र के अनुसार अंडाणु की परिपक्वता देखी जाती है, और उसी समय पर विशेष उपकरण से शुक्राणु को गर्भाशय में प्रविष्ट कराया जाता है। यदि अंडाणु और शुक्राणु सही समय पर मिल जाते हैं, तो गर्भधारण संभव होता है। आईयूआई प्रक्रिया दर्दरहित होती है और इसे क्लिनिक में कुछ मिनटों में किया जा सकता है। आईवीएफ क्या है? (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) आईवीएफ का पूरा नाम है — इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (In Vitro Fertilization)। यह एक अधिक जटिल, तकनीकी और महंगी प्रक्रिया है। इसमें महिला के शरीर से अंडाणु निकाले जाते हैं और पुरुष के शुक्राणुओं के साथ लैब में निषेचित किए जाते हैं। जब भ्रूण बन जाता है, तो उसे महिला के गर्भाशय में डाला जाता है। यह प्रक्रिया उन दंपत्तियों के लिए होती है जिनके केस में सामान्य गर्भधारण संभव नहीं होता, जैसे: आईवीएफ एक नियंत्रित प्रक्रिया है और सफलता की संभावना आईयूआई की तुलना में अधिक होती है। आईयूआई क्या होता है और यह कैसे काम करता है? आईयूआई यानी इंट्रायूटेराइन इनसेमिनेशन एक सरल और सामान्य प्रजनन तकनीक है, जिसका उपयोग उन दंपत्तियों में किया जाता है जिन्हें गर्भधारण में कठिनाई हो रही हो। इस प्रक्रिया में पुरुष के शुक्राणुओं को पहले साफ़ किया जाता है और उनकी गति और गुणवत्ता को बढ़ाया जाता है। इसके बाद उन्हें एक पतली नली की मदद से महिला के गर्भाशय (यूटरस) में सीधा डाला जाता है। इसका उद्देश्य यह होता है कि शुक्राणु को अंडाणु के अधिक करीब पहुंचाया जाए ताकि प्राकृतिक रूप से निषेचन (फर्टिलाइजेशन) होने की संभावना बढ़ सके। इस प्रक्रिया के दौरान महिला के अंडाशय (ओवरी) की निगरानी की जाती है, और जब अंडाणु परिपक्व हो जाते हैं, तब डॉक्टर उचित समय पर शुक्राणु स्थानांतरित करते हैं। आईयूआई का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह बिना ऑपरेशन और बिना किसी दर्द के, केवल कुछ मिनटों में क्लिनिक में ही पूरी की जा सकती है। यह उन महिलाओं के लिए बहुत उपयोगी मानी जाती है जिनकी फॉलोपियन ट्यूब खुली हुई होती है और जिनका मासिक धर्म चक्र नियमित होता है। यह प्रक्रिया बहुत ही सहज होती है, लेकिन इसमें सफलता के लिए सही समय, परिपक्व अंडाणु, और स्वस्थ शुक्राणु की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। यदि पहले प्रयास में सफलता न मिले, तो डॉक्टर 2–3 आईयूआई चक्रों की सलाह दे सकते हैं। आईवीएफ क्या होता है और यह कैसे काम करता है? आईवीएफ यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन एक आधुनिक और तकनीकी रूप से उन्नत प्रजनन तकनीक है, जिसका उपयोग तब किया जाता है जब अन्य सभी प्राकृतिक या सरल तरीकों से गर्भधारण संभव नहीं हो पा रहा हो। इसमें अंडाणु और शुक्राणु का निषेचन महिला के शरीर के बाहर, एक विशेष प्रयोगशाला में किया जाता है। आईवीएफ प्रक्रिया की शुरुआत हार्मोनल दवाओं और इंजेक्शन से होती है, जो महिला के अंडाशय को उत्तेजित करते हैं ताकि एक साथ कई अंडाणु विकसित हो सकें। जब ये अंडाणु परिपक्व हो जाते हैं, तब डॉक्टर एक सूक्ष्म सुई की मदद से उन्हें बाहर निकालते हैं। इसी समय पुरुष से भी शुक्राणु लिए जाते हैं। इसके बाद लैब में अंडाणु और शुक्राणु को एक साथ रखा जाता है ताकि वे आपस में मिलकर भ्रूण का निर्माण करें। कुछ दिनों तक भ्रूण को लैब में विकसित होने दिया जाता है। जब भ्रूण अच्छे से बन जाता है, तब उसे महिला के गर्भाशय में एक पतली नली द्वारा प्रत्यारोपित किया जाता है। अगर भ्रूण गर्भाशय की दीवार में सफलतापूर्वक चिपक जाए, तो महिला गर्भवती हो जाती है। इस प्रक्रिया में कई बार एडवांस तकनीकों का उपयोग भी किया जाता है जैसे कि: आईवीएफ प्रक्रिया लंबी और भावनात्मक रूप से चुनौतीपूर्ण होती है, लेकिन यह उन दंपत्तियों के लिए एक आशा की किरण है जो वर्षों से संतान के लिए प्रयासरत हैं। इसके माध्यम से लाखों परिवारों में खुशियां लौटी हैं। आईवीएफ कराने से पहले कौन-कौन से टेस्ट होते हैं? 1. महिला के लिए ज़रूरी टेस्ट: AMH (Anti-Müllerian Hormone) टेस्ट यह टेस्ट बताता है कि महिला के अंडाशय (ovary) में कितने अंडाणु (eggs) बचे हैं। इसे ओवरी रिज़र्व टेस्ट भी कहते हैं। AMH की मात्रा IVF की सफलता को प्रभावित करती है। FSH (Follicle Stimulating Hormone) टेस्ट यह हार्मोन अंडाणु बनने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। यदि FSH का स्तर बहुत ज़्यादा है, तो अंडाणु की क्वालिटी और संख्या कम हो सकती है। LH, Estradiol और Prolactin टेस्ट यह हार्मोन महिला की ओवुलेशन साइकिल को कंट्रोल करते हैं। IVF से पहले इनका बैलेंस ज़रूरी होता है। Pelvic Ultrasound (TVS) अल्ट्रासाउंड से यह देखा जाता है कि अंडाशय और गर्भाशय की स्थिति कैसी है — अंडाणु बन रहे हैं या नहीं, और गर्भाशय में कोई गांठ (fibroid), पोलिप या थिकनेस की दिक्कत तो नहीं। HSG (Hysterosalpingography) या SIS टेस्ट यह टेस्ट दिखाता है कि फैलोपियन ट्यूब्स खुली हैं या बंद। IVF में ये…

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