क्या आईवीएफ दर्दनाक होता है? जानिए पूरी प्रक्रिया और इसके अनुभव
June 26, 2025विज्ञान ने आज जीवन के हर क्षेत्र को छू लिया है। चिकित्सा विज्ञान में जो चमत्कारी प्रगति हुई है, उसने उन लोगों के लिए भी उम्मीद जगाई है जो पहले संतान सुख से वंचित रह जाते थे। पहले के समय में यदि कोई दंपति संतान प्राप्त नहीं कर पाता था, तो समाज इसे अभिशाप मान लेता था। लेकिन आज यह केवल एक चिकित्सकीय स्थिति है, जिसका इलाज संभव है। इसी इलाज की एक महत्वपूर्ण तकनीक है — आईवीएफ।
आईवीएफ शब्द सुनते ही आम लोगों के मन में कई प्रश्न जन्म लेते हैं। सबसे पहला और स्वाभाविक सवाल यही होता है — आईवीएफ का पूरा नाम क्या है? इस लेख में हम इसी प्रश्न का उत्तर विस्तार से जानेंगे। साथ ही यह भी समझेंगे कि आईवीएफ क्या है, कैसे काम करता है, इसका उद्देश्य क्या है, और यह किस प्रकार लाखों निःसंतान दंपतियों के लिए एक नई किरण बन चुका है।

सबसे पहले, हम आपको बताना चाहते हैं कि हम IVF और अन्य प्रजनन समाधानों के लिए क्यों अच्छे हैं…
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आईवीएफ का पूरा नाम क्या है?
आईवीएफ एक शॉर्ट फॉर्म है जिसका पूरा नाम है — इन विट्रो फर्टिलाइजेशन।
यह नाम अंग्रेजी भाषा से लिया गया है, जिसमें:
- “इन विट्रो” का अर्थ होता है — कांच के पात्र में या शरीर के बाहर
- “फर्टिलाइजेशन” का अर्थ होता है — निषेचन यानी अंडाणु और शुक्राणु का मिलन
अर्थात् इन विट्रो फर्टिलाइजेशन का शाब्दिक अर्थ हुआ — शरीर के बाहर, कृत्रिम रूप से, अंडाणु और शुक्राणु को मिलाकर भ्रूण बनाना। और फिर उसे महिला के गर्भाशय में स्थापित करना ताकि गर्भधारण संभव हो सके।
जब महिला और पुरुष के अंडाणु और शुक्राणु आपस में प्राकृतिक रूप से नहीं मिल पाते हैं, तब डॉक्टर यह प्रक्रिया लैब में कृत्रिम रूप से करते हैं। यही प्रक्रिया आईवीएफ कहलाती है।
आईवीएफ क्या है?
आईवीएफ एक आधुनिक तकनीक है जो निःसंतान दंपतियों को संतान प्राप्ति की दिशा में सहायता करती है। यह तकनीक उन दंपतियों के लिए एक वरदान है, जो लंबे समय तक प्रयास करने के बाद भी गर्भधारण नहीं कर पाते।
इसमें महिला के शरीर से अंडाणु (एग्स) और पुरुष से शुक्राणु (स्पर्म) लेकर उन्हें लैब में मिलाया जाता है। लैब में जब निषेचन यानी फर्टिलाइजेशन होता है, तो एक भ्रूण बनता है। इस भ्रूण को महिला के गर्भाशय में डाला जाता है। यदि सब कुछ सफलतापूर्वक होता है, तो महिला गर्भवती हो जाती है और सामान्य तरीके से उसका गर्भकाल चलता है।
इन विट्रो फर्टिलाइजेशन का वैज्ञानिक महत्व
प्राकृतिक गर्भधारण की प्रक्रिया महिला के गर्भाशय के अंदर होती है। लेकिन जब किसी कारणवश यह प्रक्रिया बाधित होती है — जैसे फॉलोपियन ट्यूब ब्लॉक होना, पुरुष में शुक्राणुओं की कमी होना, या महिला में हार्मोनल असंतुलन होना — तब आईवीएफ जैसी तकनीक की सहायता ली जाती है।
“इन विट्रो” का प्रयोग इसीलिए किया गया है क्योंकि यह प्रक्रिया शरीर के बाहर की जाती है। पहले भ्रूण को लैब में विकसित किया जाता है और फिर उसे शरीर के भीतर स्थानांतरित किया जाता है।
आईवीएफ के चरण
आईवीएफ एक लंबी और क्रमबद्ध प्रक्रिया है, जो कई चरणों में पूरी होती है। हर चरण की अपनी विशेषता और उद्देश्य होता है।
1. डिम्बग्रंथियों की उत्तेजना (Ovarian Stimulation)
इस चरण में महिला को हार्मोनल इंजेक्शन दिए जाते हैं ताकि उसके अंडाशय (ओवरी) अधिक संख्या में अंडाणु तैयार कर सकें। सामान्य रूप से हर मासिक चक्र में एक अंडाणु बनता है, लेकिन आईवीएफ के लिए कई अंडाणुओं की आवश्यकता होती है।
2. अंडाणु का संग्रह (Egg Retrieval)
जब अल्ट्रासाउंड द्वारा यह देखा जाता है कि अंडाणु परिपक्व हो चुके हैं, तो उन्हें एक छोटी शल्य प्रक्रिया द्वारा निकाला जाता है। इस प्रक्रिया को एग रिट्रीवल कहते हैं और यह बेहोशी के साथ की जाती है।
3. शुक्राणु संग्रह (Sperm Collection)
इस प्रक्रिया में पुरुष से उसके शुक्राणु लिए जाते हैं। यदि किसी कारणवश पुरुष से शुक्राणु प्राप्त नहीं हो पा रहे हों, तो डोनर स्पर्म का भी उपयोग किया जा सकता है।
4. निषेचन (Fertilization)
महिला के अंडाणु और पुरुष के शुक्राणु को लैब में एक विशेष माध्यम में मिलाया जाता है। सामान्यतः 16 से 18 घंटों के भीतर निषेचन होता है और भ्रूण बनने लगता है।
5. भ्रूण स्थानांतरण (Embryo Transfer)
जब भ्रूण 3 से 5 दिन पुराना हो जाता है, तो उसे महिला के गर्भाशय में एक पतली नली के माध्यम से स्थानांतरित किया जाता है। यह प्रक्रिया लगभग दर्दरहित होती है।
6. प्रेगनेंसी टेस्ट
भ्रूण स्थानांतरण के 12 से 14 दिन बाद महिला का रक्त परीक्षण (बीटा HCG टेस्ट) किया जाता है, जिससे यह पता चलता है कि गर्भधारण हुआ है या नहीं।
आईवीएफ और सामान्य प्रेगनेंसी में क्या फर्क होता है?
आईवीएफ (In Vitro Fertilization) और सामान्य गर्भधारण (Natural Pregnancy) दोनों का लक्ष्य एक ही होता है — एक स्वस्थ शिशु का जन्म। लेकिन इन दोनों के बीच कुछ अहम अंतर होते हैं, खासकर गर्भधारण की प्रक्रिया, देखभाल, और भावनात्मक अनुभव के मामले में।
1. गर्भधारण की प्रक्रिया
- सामान्य प्रेगनेंसी: अंडाणु और शुक्राणु महिला के शरीर के अंदर (फैलोपियन ट्यूब में) मिलते हैं। यह प्राकृतिक रूप से होता है।
- आईवीएफ प्रेगनेंसी: अंडाणु और शुक्राणु को शरीर के बाहर लैब में मिलाया जाता है। फिर भ्रूण को महिला के गर्भाशय में ट्रांसफर किया जाता है।
यानी, IVF में कृत्रिम तरीके से गर्भधारण कराया जाता है, जबकि सामान्य प्रेगनेंसी में ये प्रकृति द्वारा स्वत: होता है।
2. शारीरिक देखभाल और मेडिकल निगरानी
- IVF प्रेगनेंसी में शुरुआत के महीनों में हार्मोनल दवाइयों, इंजेक्शन और नियमित अल्ट्रासाउंड की जरूरत होती है।
- सामान्य प्रेगनेंसी में अगर सब कुछ सामान्य हो तो ज़्यादा मेडिकल हस्तक्षेप नहीं होता।
IVF में जोखिम थोड़ा ज़्यादा माना जाता है, जैसे गर्भाशय में ब्लीडिंग, ट्विन प्रेगनेंसी, या इम्प्लांटेशन की समस्या, इसलिए ज़्यादा निगरानी की जाती है।
3. भावनात्मक और मानसिक स्थिति
IVF से बनी प्रेगनेंसी अक्सर भावनात्मक रूप से ज़्यादा जुड़ी होती है, क्योंकि इसके पीछे लम्बी कोशिशें, इलाज, पैसा और समय लगता है।
माँ और परिवार IVF के दौरान ज़्यादा चिंता, उम्मीद और डर का सामना करते हैं।
सामान्य प्रेगनेंसी में ये भावनाएँ होती हैं, लेकिन IVF में वो भावनात्मक स्तर कहीं अधिक होता है।
4. खर्च और समय
IVF एक महंगी प्रक्रिया होती है, जिसमें लाखों रुपये लग सकते हैं। एक IVF चक्र में 4 से 6 सप्ताह का समय लगता है और कभी-कभी दो से तीन चक्र भी लगते हैं।
वहीं, सामान्य प्रेगनेंसी में कोई विशेष खर्च नहीं होता, और समय वही 9 महीने का होता है।
5. गर्भावस्था और बच्चे में कोई अंतर?
एक बहुत बड़ा मिथक है कि IVF से पैदा होने वाले बच्चे सामान्य नहीं होते।
सच्चाई यह है कि IVF से जन्मा बच्चा पूरी तरह सामान्य, स्वस्थ और प्राकृतिक बच्चों की तरह ही होता है।
आईवीएफ की आवश्यकता किन लोगों को होती है?
आईवीएफ उन दंपतियों के लिए सबसे अधिक सहायक होती है, जिन्हें नीचे दिए गए कारणों से संतान प्राप्ति में समस्या हो:
- महिला की फॉलोपियन ट्यूब ब्लॉक हो
- पुरुष के शुक्राणुओं की संख्या बहुत कम हो
- महिला को एंडोमेट्रियोसिस हो
- पीसीओडी या पीसीओएस की समस्या हो
- अनियमित मासिक धर्म
- बार-बार गर्भपात होना
- उम्र अधिक होने पर अंडाणु की गुणवत्ता कम हो जाना
- अनजाने कारणों से गर्भधारण न हो पाना (Unexplained Infertility)
टेस्ट ट्यूब बेबी और आईवीएफ: एक ही प्रक्रिया
बहुत से लोग सोचते हैं कि टेस्ट ट्यूब बेबी और आईवीएफ अलग-अलग प्रक्रियाएं हैं, लेकिन वास्तव में दोनों एक ही हैं। “टेस्ट ट्यूब बेबी” एक आम बोलचाल की भाषा है, जबकि “आईवीएफ” इसका वैज्ञानिक नाम है। चूंकि निषेचन शरीर के बाहर एक कांच की डिश में किया जाता है, इसलिए इसे ‘टेस्ट ट्यूब बेबी’ कहा जाने लगा।
आईवीएफ की सफलता दर
आईवीएफ की सफलता कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे महिला की उम्र, अंडाणु की गुणवत्ता, शुक्राणु की गति और स्वास्थ्य, और डॉक्टर की विशेषज्ञता। सामान्यतः सफलता दर इस प्रकार होती है:
- 30 वर्ष से कम उम्र में: 45–50 प्रतिशत
- 30 से 35 वर्ष तक: 35–40 प्रतिशत
- 35 से 40 वर्ष तक: 25–30 प्रतिशत
- 40 वर्ष से अधिक: 10–20 प्रतिशत
अगर भ्रूण की गुणवत्ता अच्छी हो और महिला का गर्भाशय पूरी तरह स्वस्थ हो, तो सफलता की संभावना और बढ़ जाती है।
आईवीएफ का खर्च
आईवीएफ एक महंगी प्रक्रिया होती है, क्योंकि इसमें उच्च तकनीक, विशेषज्ञता, और कई तरह की दवाएं शामिल होती हैं। भारत में एक चक्र का खर्च सामान्यतः ₹1,20,000 से ₹2,50,000 तक हो सकता है। यह लागत कई बार और अधिक हो सकती है यदि:
- आईसीएसआई (ICSI) तकनीक का उपयोग किया जाए
- भ्रूण फ्रीजिंग या पीजीडी टेस्ट कराना हो
- कई चक्रों की आवश्यकता हो
भारत में IVF लागत का विवरण
परामर्श शुल्क: यह बांझ दंपतियों और प्रजनन विशेषज्ञ के बीच चर्चा है। भारत में परामर्श की औसत लागत ₹500 से ₹2000 के बीच है। हालाँकि, IVF से पहले आवश्यक परामर्शों की संख्या के आधार पर लागत बढ़ सकती है।
दवा शुल्क: IVF प्रक्रिया में अंडाशय को उत्तेजित करने के लिए हार्मोनल दवाओं और भ्रूण स्थानांतरण के लिए गर्भाशय को तैयार करने के लिए दवा की आवश्यकता होती है। इसलिए IVF के लिए आवश्यक दवाओं और खुराक की लागत प्रति चक्र लगभग ₹15000 से ₹60000 हो सकती है।
अंडा पुनर्प्राप्ति और भ्रूण निर्माण: अंडा पुनर्प्राप्ति अंडाशय से अंडे को निकालना है, और भ्रूण निर्माण एक प्रयोगशाला डिश में अंडे और शुक्राणु का संयोजन है जिससे भ्रूण बनता है। इस चरण की लागत लगभग 50000 से 100000 रुपये है।
भ्रूण स्थानांतरण: गर्भावस्था को विकसित करने के लिए भ्रूण को महिला के गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाता है। तो, इस कारक के लिए, 15000 से 30000 रुपये की आवश्यकता होती है, और यह वास्तविक लागत है।
पीजीडी (प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस) और (इंट्रासाइटोप्लाज़मिक स्पर्म इंजेक्शन): पीजीडी और आईसीएसआई दो अतिरिक्त प्रक्रियाएं हैं जो आनुवंशिक मुद्दों और पुरुष बांझपन जैसे मामलों में फायदेमंद हैं। यह कारक 50000 से 100000 के बीच होता है।
निम्नलिखित आपको भारत में IVF की लागत को समझने में मदद करता है:
भारत में IVF उपचार के प्रकार | भारत में IVF उपचार की लागत (INR) |
भारत में स्व-अंडे और शुक्राणु के साथ IVF की लागत | INR 1,50,000 |
भारत में ICSI के साथ IVF की लागत | INR 1,65,000-1,85,000 |
भारत में डोनर अंडे के साथ IVF की लागत | INR 2,06,000-3,00,000 |
भारत में डोनर शुक्राणु के साथ IVF की लागत | INR 2,10,000 |
भारत में लेजर असिस्टेड हैचिंग (LAH) के साथ IVF की लागत | INR 2,10,000-2,20,000 |
भारत में डोनर भ्रूण के साथ IVF की लागत | INR 2,05,000-3,00,000 |
भारत में PGD तकनीक के साथ IVF की लागत | INR 3,00,000 |
नीचे दी गई टेबल आपको आईवीएफ लागत के बारे में बताएगी:
आईवीएफ अलग स्थान पर | भारत के विभिन्न स्थानों में आईवीएफ की लागत |
दिल्ली में आईवीएफ लागत | ₹150000 – ₹310000 |
मुंबई में आईवीएफ लागत | ₹150000 – ₹354000 |
बैंगलोर में आईवीएफ लागत | ₹155000 – ₹365000 |
उत्तर प्रदेश में आईवीएफ लागत | ₹138000 – ₹310000 |
उत्तराखंड में आईवीएफ लागत | ₹130000 – ₹310000 |
तेलंगाना में आईवीएफ लागत | ₹147000 – ₹310000 |
पंजाब में आईवीएफ लागत | ₹140900 – ₹310000 |
मध्य प्रदेश में आईवीएफ लागत | ₹150000 – ₹310000 |
ओडिशा में आईवीएफ लागत | ₹126000 – ₹310000 |
राजस्थान में आईवीएफ लागत | ₹154000 – ₹310000 |
झारखंड में आईवीएफ लागत | ₹142000 – ₹310000 |
बिहार में आईवीएफ लागत | ₹130000 – ₹310000 |
आंध्र प्रदेश में आईवीएफ लागत | ₹130000 – ₹310000 |
असम में आईवीएफ लागत | ₹130000 – ₹310000 |
गुजरात में आईवीएफ लागत | ₹130000 – ₹310000 |
भारत में IVF की सफलता दर
भारत में 35 वर्ष से कम आयु की महिलाओं के लिए औसत IVF सफलता दर प्रति चक्र लगभग 50% से 65% है। बढ़ती उम्र के साथ सफलता दर कम होती जाती है। यह सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि जोड़े की उम्र, खास तौर पर महिलाओं की, IVF की सफलता प्राप्त करने के लिए शामिल IVF प्रयासों की संख्या, उन्नत तकनीक और नवीनतम तकनीकों का उपयोग जो सफलता दर को बढ़ा सकते हैं, और प्रजनन डॉक्टरों या IVF विशेषज्ञों का अनुभव और विशेषज्ञता.
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सेलेक्ट आईवीएफ (Select IVF) क्यों चुनें?
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तकनीकी रूप से भी यह क्लिनिक अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस है। यहां ICSI, IUI, Egg Donation, Embryo Freezing, PESA, TESA और Surrogacy जैसी सभी प्रमुख प्रक्रियाएं उपलब्ध हैं। इसके साथ ही, सभी टेस्ट और स्कैनिंग सुविधाएं भी एक ही छत के नीचे मिल जाती हैं, जिससे मरीजों को अलग-अलग जगह भटकने की जरूरत नहीं पड़ती।
Select IVF की एक और खूबी है – पारदर्शिता। यहां किसी भी तरह की छिपी हुई फीस नहीं होती। हर खर्च और हर प्रक्रिया को पहले से समझाया जाता है ताकि मरीज मानसिक रूप से तैयार हो सके। यही कारण है कि यहां आने वाले मरीज केवल भारत से ही नहीं, बल्कि नेपाल, बांग्लादेश, यूएई, अमेरिका, नाइजीरिया और अफ्रीका जैसे कई देशों से भी आते हैं।
Select IVF सिर्फ एक फर्टिलिटी क्लिनिक नहीं, बल्कि एक भरोसा है, जो हर दंपति के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए पूरी ईमानदारी से काम करता है।
निष्कर्ष
अब आप जान चुके हैं कि आईवीएफ का पूरा नाम “इन विट्रो फर्टिलाइजेशन” है और इसका अर्थ है — शरीर के बाहर कृत्रिम रूप से अंडाणु और शुक्राणु का निषेचन करना। यह तकनीक उन दंपतियों के लिए आशा की किरण है जो लंबे समय से संतान सुख की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
आईवीएफ विज्ञान और मानव प्रयास का सुंदर मिलन है। यह एक भावनात्मक, शारीरिक और आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण यात्रा हो सकती है, लेकिन यदि इसे समझदारी, धैर्य और डॉक्टर की सलाह के अनुसार किया जाए, तो यह जीवन में खुशियों की बहार ला सकती है।
सामान्य सवाल-जवाब (FAQs)
आईवीएफ का पूरा नाम क्या है?
आईवीएफ का पूरा नाम है इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (In Vitro Fertilization)। यह एक वैज्ञानिक शब्द है जिसका अर्थ होता है — शरीर के बाहर, कृत्रिम रूप से अंडाणु और शुक्राणु को मिलाकर भ्रूण बनाना। “इन विट्रो” का अर्थ होता है कांच के पात्र में या शरीर के बाहर, और “फर्टिलाइजेशन” का मतलब होता है निषेचन। जब अंडाणु और शुक्राणु शरीर के बाहर लैब में मिलाए जाते हैं, और फिर बने हुए भ्रूण को महिला के गर्भ में डाला जाता है, तो इस पूरी प्रक्रिया को आईवीएफ कहा जाता है।
इन विट्रो फर्टिलाइजेशन क्या होता है
इन विट्रो फर्टिलाइजेशन एक चिकित्सा प्रक्रिया है, जिसमें महिला के अंडाणु और पुरुष के शुक्राणु को शरीर के बाहर एक विशेष लैब में मिलाया जाता है ताकि निषेचन हो सके और भ्रूण बन सके। इसके बाद उस भ्रूण को महिला के गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाता है ताकि गर्भधारण हो सके। यह प्रक्रिया उन दंपतियों के लिए की जाती है जिन्हें प्राकृतिक रूप से गर्भधारण में कठिनाई होती है। यह विज्ञान की एक अद्भुत देन है, जिसने लाखों निःसंतान दंपतियों को संतान का सुख दिया है।
टेस्ट ट्यूब बेबी और आईवीएफ में क्या अंतर है?
टेस्ट ट्यूब बेबी और आईवीएफ वास्तव में एक ही प्रक्रिया के दो अलग-अलग नाम हैं। “टेस्ट ट्यूब बेबी” एक सामान्य, बोलचाल की भाषा है जिसे आम लोग समझने में आसानी महसूस करते हैं। वहीं “आईवीएफ” इसका वैज्ञानिक और तकनीकी नाम है — इन विट्रो फर्टिलाइजेशन। दोनों का अर्थ एक ही है: शरीर के बाहर, लैब में, अंडाणु और शुक्राणु का मिलन कराकर भ्रूण बनाना और फिर उसे महिला के गर्भ में स्थापित करना।
आईवीएफ प्रक्रिया किन लोगों के लिए ज़रूरी होती है?
आईवीएफ प्रक्रिया उन दंपतियों के लिए उपयोगी होती है जो लंबे समय से संतान प्राप्ति की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल रही। जैसे अगर महिला की फॉलोपियन ट्यूब ब्लॉक हो, पुरुष में शुक्राणुओं की संख्या या गुणवत्ता कम हो, महिला को पीसीओडी, एंडोमेट्रियोसिस या हार्मोनल गड़बड़ी हो, या पहले कई बार गर्भपात हो चुका हो — तो ऐसे मामलों में आईवीएफ प्रक्रिया की सलाह दी जाती है। यह तकनीक ऐसे सभी मामलों में बहुत प्रभावी और सहायक सिद्ध हुई है।
आईवीएफ का खर्च कितना आता है?
आईवीएफ एक तकनीकी और जटिल प्रक्रिया होने के कारण इसकी लागत थोड़ी अधिक होती है। भारत में एक सामान्य आईवीएफ चक्र का खर्च लगभग ₹1,20,000 से ₹2,50,000 या उससे अधिक भी हो सकता है। खर्च इस बात पर निर्भर करता है कि किस क्लिनिक में इलाज हो रहा है, किन तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है, दवाओं की मात्रा कितनी है और कितने चक्र (cycles) की आवश्यकता है। कभी-कभी एडवांस तकनीक जैसे आईसीएसआई, पीजीडी, या भ्रूण फ्रीजिंग का उपयोग भी लागत को बढ़ा सकता है।
आईवीएफ की सफलता दर कितनी होती है?
आईवीएफ की सफलता दर कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे महिला की उम्र, अंडाणु और शुक्राणु की गुणवत्ता, डॉक्टर का अनुभव, और महिला का संपूर्ण स्वास्थ्य। सामान्यतः 30 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में आईवीएफ की सफलता दर 40 से 50 प्रतिशत तक होती है। 35 वर्ष के बाद यह दर घटकर 30–35 प्रतिशत रह जाती है, और 40 वर्ष के बाद यह लगभग 10–20 प्रतिशत होती है। हालांकि आधुनिक तकनीकें अब इस दर को बेहतर बनाने में मदद कर रही हैं।